sri hanuman stuti
अतुलितबलधामं स्वणंशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥
श्रीहनुमानजीहनुमान जयंती 2025: मांगलिक दोष वाले ये खास उपाय, बदल जाएगी किस्मत! के जन्म का मूल कारण
श्रीहनुमानजी के जन्म1
१. लंकापति रावण के अत्याचार से विश्व त्रस्त था । मनुष्य और पशु-पक्षियों की कौन कहे, देवता भी उसका लोहा मानते थे । पर्वताकार कुम्भकरण जब अपनी छः महीने की निद्रा पूर्ण करके उठता था, तो सभी धरती के जीवों में हलचल सी मच जाती थी। रावण और कुम्भकरण भगवान शंकर के ही भक्त थे। रावण ने तो शंकर जी को अपना शीश भी काटकर चढ़ाया था और ब्रह्माजी से नः और वानर के अतिरिक्त किसी से भी न मरने का वरदान प्राप्त कर लिया था। नर और वानर को तो वह अपने बाहुबल के आगे कुछ भी नहीं समझता था। इसपर देवताओं ने भगवान शंकर की घोर आराधना की। शंकर भगवान ने देवताओं को बताया कि रावण और कुम्भकरण दोनों उनकेगण ही तो थे। अतः उन्हें पुनः अपने पास बुलाने के लिए वे स्वयं आकुल थे । इसके अतिरिक्त रावण ने महाकाल तथा शनिदेव को भी बन्दी बना लिया था। ये दोनों देवता संहारकारी भगवान शंकर के प्रिय अनुचर थे। इन्हें भी तो वहाँ से मुक्त कराना था। भगवान शंकर ने बताया कि मैं वानर का अभिमानशून्य रूप धारण करूँगा तथा श्रीराम का अनुचर बनकर धरती पर आऊँगा ।श्रीहनुमानजी के जन्म
२. कौतुकी नगर में नारद के द्वारा शाप पाने के पश्चात् भगवान विष्णु सदा ही चिन्तित रहते थे। रावण के अत्याचार की लपटें आकाश-पाताल तथा सृष्टि के प्रत्येक कोने पर व्याप्त हो चुकी थीं। अतः अब यह आवश्यक था कि भगवान विष्णु अपने प्रमुख सहायकों के साथ अवतार ग्रहण करते और उस अत्याचारी रावण को मृत्यु के घाट उतारते । शेषासन पर बैठे-बैठे भगवान को एक बात सूझ पड़ी कि भगवान शंकर को भी हमारे साथ ही चलना चाहिए, नहीं तो रावण को पराजित करना आसान कार्य नहीं है। भगवान विष्णु ने सहस्त्रदल वाले रक्त कमलों को ले कर भगवान शंकर की आराधना करना आरम्भ कर दिया। भगवान कमलापति की आराधना से प्रसन्न होकर गिरिजापति भगवान शंकर प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा। भगवान विष्णु ने कहा, हे प्रभो ! आप हमारे आराध्यदेव हैं। आप ही के द्वारा दिया गया अमोघ अस्त्र चक्र-सुदर्शन ही हमारा रक्षक है। अब आपको भी हमारे साथ ही पृथ्वी पर अवतरित होना है, क्योंकि बिना आपके हमारा कोई भी अस्तित्व नहीं है। भगवान शंकर ने कहा कि हे प्रभो! मैं तो सदा ही आपकी सेवा के लिए तत्पर हूँ। यह तो हमारे लिए सौभग्य की बात होगी। हमने भी महारानी अञ्जना को वरदान दिया है कि उन्हीं के गर्भ से पुत्र रूप में उत्पन्न होऊँगा। वैसे तो रावण भी हमारा ही भक्त है, किन्तु अहंकार के वशीभूत होकर वह उचित और अनुचित का निराकरण करना भूल गया है। इसी से हमने उसके यहाँ धनुष तथा शिवलिङ्ग (बाबा बैद्यनाथ) को पहुँचने नहीं दिया है।
३. सत्यपथ नगरी के राजा केशरी और उनकी महारानी अञ्जना के कोई सन्तान नहीं थी। महारानी जी को बहुत ही चिंता रहती थी। उन्होंने अपने पति की आज्ञा को शिरोधार्य करके गन्धमादन पर्वत पर जाकर शिव की कठोर आराधना की। बहुत दिनों की घोर तपस्या के बाद भगवान लोक-कल्याणकारी श्रीभूतनाथ जी प्रकट हुए और अञ्जना से वरदान माँगने को कहा। अञ्जना ने कहा-‘हे भगवन् ! हमें तो आप जैसे ही बली तथा तेजस्वी पुत्र चाहिए ।’ भगवान शंकर ने कहा कि ‘देवि ! मैं ही पुत्र रूप में तुम्हारे गर्भ से उत्पन्न होऊँगा।’ ऐसा सुन्दर वरदान देकर भगवान शंकर अन्तर्धान हो गये और अञ्जना देवी अपने राजमहल को लौट आईं ।
श्रीहनुमानजी के जन्म
४. जलन्धर जैसे बली राक्षस का संहार करने के लिए भगवान शंकर के लिए यह आवश्यक हो गया कि पवनदेव की शक्ति भी साथ हो, क्योंकि वह राक्षस बहुत ही तीव्र गति से आक्रमण करता था और उसकी चपेट से कोई भी बच नहीं सकता था। भगवान शंकरhttp://shankar.com के अनुरोध पर पवनदेव ने अपनी सभी शक्तियों को भगवान शंकर के साथ किया और उस वेग के सहयोग से ही जलन्धर मारा गया। उस दुष्ट का संहार करके भगवान शंकर ने पवन को उनकी शक्ति वापस की और उनसे वरदान माँगने को कहा। पवनदेव ने भगवान शंकर से उनकी अविचल भक्ति ही माँगी। भगवान शंकर ने कहा कि तुम्हारे इस उपकार के बदले में मैं तुम्हारा पुत्र होकर विश्व में प्रसिद्ध हूँगा