भगवान् श्रीकृष्ण

भगवान् श्रीकृष्ण

भगवान् श्रीकृष्ण



‘तू जिसे इतने उत्साहसे पहुँचाने जा रहा है, उसीका आठयाँ पुत्र तेरा काल होगा। आकाशवाणी सुनकर कंस चौंका। वह अपनी छोटी बहन देवकीको विवाह होनेके बाद बड़े उत्साहसे पहुँचाने जा रहा था। कंस मृत्युके भयसे काँप उठा। वह तलवार खींचकर अपनी बहनका वध करनेके लिये तैयार हो गया। वसुदेवजीने देवकीसे उत्पन्न शिशुओंको कंसको देनेका वचन देकर उसके प्राणोंकी रक्षा की। इतनेपर भी कंसने उन नव-दम्पतिको कारागारमें डाल दिया। विरोध करनेपर वह अपने ही पिताको बन्दी बनाकर स्वयं मथुराका नरेश बन गया।

बच्चे पैदा होते ही वसुदेवजी कंसके सम्मुख लाकर रख देते। वह उन्हें उठाकर शिलापर पटक देता। एकके बाद एक शिशुओंके रक्तसे शिलाखण्ड रक्तरञ्जित होता गया। इस तरह देवकीके छः शिशु मौतके घाट उतर गये। सातवें गर्भमें भगवान् शेष पधारे। योगमायाने उन्हें संकर्षित करके गोकुलमें रोहिणीके गर्भमें पहुँचा दिया। आठवें गर्भसे स्वयं श्रीकृष्णचन्द्रका प्राकट्य हुआ। वसुदेव-देवकीकी हथकड़ी-बेड़ी अपने-आप खुल गयी। पहरेदार सो गये और बन्दीगृहके दरवाजे भी खुल गये। वसुदेवजी गोकुल जाकर नन्दभवनमें उन्हें यशोदाके पास रख आये और कंसको मिली यशोदाकी योगमायारूपी कन्या। जब कंस उसे शिलाखण्डपर पटकना चाहा, तब वह उसके हाथसे छूटकर आकाशमें चली गयी और अष्टभुजारूपमें कंसके कालपुरुषके कहीं और प्रकट होनेकी सूचना दी।

गोकुलकी गलियोंमें आनन्द उमड़ पड़ा। कंसके द्वारा भेजे गये पूतना, शकटासुर, वात्याचक्र आदि असुर कन्हैयाके करोंसे सद्गति पा गये। धीरे-धीरे श्रीकृष्ण कुछ बड़े हुए। माखन-चोरीकी लीला समाप्त हुई स्वयं बन्दरोंको अपने घरका माखन लुटाकर। मैयाने उन्हें ऊखलमें बाँधकर दामोदर बना दिया। यमलार्जुनका उद्धार हुआ और नन्दादि गोप वृन्दावनमें जा बसे। श्रीकृष्ण बछड़ोंके चरवाहे बने। बकासुर आदि सभी असुर श्रीकृष्णके हाथों मृत्युको प्राप्त हुए। कालियके फणोंपर नृत्य करके श्यामसुन्दरने यमुनाजीको विषमुक्त किया। ब्रह्माजी भी अन्तमें नटखटकी स्तुति कर गये। इन्द्रकोपसे व्रजवासियोंको बचाकर श्रीकृष्णने इन्द्रका गर्व-भंजन किया। महारास आदि श्रीकृष्णलीलाकी कितनी ही मधुर स्मृतियाँ समेटनेका सौभाग्य मिला वृन्दावनकी पावन भूमिको ।

अक्रूरद्वारा कंसका निमन्त्रण प्राप्तकर नन्दबाबा बलराम-श्याम तथा गोपोंके साथ भेंट लेकर मथुरा पहुँचे। कंसको श्रीकृष्णके पधारनेका संदेश मिला अहङ्कारी धोबीकी मृत्युसे। श्रीकृष्णने कुब्जाका अङ्गराग स्वीकार कर क्षणमात्रमें उसे परम सुन्दरी बना दिया। कंसका आराधित धनुष उन्होंने उसके गर्वकी भाँति क्षणमात्रमें तोड़ डाला। दूसरे दिन महोत्सव था कंसकी कूटनीतिका। श्रीकृष्णचन्द्रने कुवलयापीडको मारकर उसका श्रीगणेश किया। अखाड़ेमें श्रीकृष्ण-बलरामके वज्रके सदृश प्रहारोंसे चाणूर-मुष्टिक जैसे पहलवान चूर्ण हो गये। धर्मद्रोही कंसके जीवनकी पूर्णाहुतिसे उत्सव पूर्ण हुआ। महाराज उग्रसेन बन्दीगृहसे मुक्त होकर पुनः मथुरानरेश बने। अवन्ती जाकर श्यामसुन्दरने बड़े भाईके साथ शिक्षा प्राप्त की। मथुरा लौटते ही उन्हें जरासन्धके आक्रमणोंका सामना करना पड़ा। अठारहवें आक्रमणमें कालयवनके सामनेसे भागकर श्रीकृष्ण रणछोड़ बने। समुद्रमें द्वारकापुरी श्रीकृष्णकी निवासस्थली बनी। महाभारतके युद्धमें श्रीकृष्णने अर्जुनको गीताका उपदेश दिया और बचे हुए धर्मद्रोही असुरोंका संहार करवाकर धर्मकी स्थापना की। समस्त यादव परस्पर कलहमें कट मरे और श्रीकृष्ण देखते रहे। व्याधने श्रीकृष्णके पैरोंमें बाण मारा और उसे स्वर्गका पुरस्कार मिला। इस प्रकार श्रीकृष्ण लीलाका संवरण हुआ।

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