रुद्रावतार श्रीहनुमान्

रुद्रावतार श्रीहनुमान्

रुद्रावतार श्रीहनुमान्
रुद्रावतार श्रीहनुमान्

भारतवर्षमें श्रीहनुमान्जीकी उपासना अत्यन्त व्यापक है। वे सभी मङ्गलोंके मूल कारण तथा रुद्रके अवतार हैं। भगवान् शंकर और नारायण परस्पर एक-दूसरेके भक्त हैं, किन्तु जब नारायणने नररूप धारण करके श्रीरामके नामसे अवतार ग्रहण किया, तब शिवजीने भगवान् श्रीरामकी उपासनाके लिये रुद्ररूपको छोड़कर वानररूपमें अवतार लिया। उनके द्वारा समुद्र लाँधकर सीताका पता लगाना, लंकापुरीका दाह करना, संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणको प्राणदान देना, अजेय दुष्ट राक्षसोंका वध करना आदि अनेक असम्भव कार्योंका सम्पादन हुआ।

ब्रह्मादिपुराणोंके अनुसार श्रीहनुमान् वृषाकपि अर्थात् शिव-विष्णुके तेजोमय दिव्यविग्रहधारी देवताके रूपमें निरूपित हुए हैं। सभी पुराणों तथा विविध रामायणोंके अनुसार वैवस्वत मन्वन्तरके चौबीसवें त्रेतायुगमें वे अञ्जना नामकी अप्सरासे केसरीके पुत्रके रूपमें अवतीर्ण हुए। उनका हनुमान् नाम पड़नेका वृत्तान्त इस प्रकार है- श्रीहनुमान्जीको जन्म ग्रहण करनेके पश्चात् बारह घण्टे व्यतीत हो जानेपर बहुत अधिक भूख लगी। माताके दुग्धपानसे वे तृप्त न हो सके। इससे चिन्तित होकर कुछ फल आदि लानेके लिये अञ्जना जंगल चली गयीं। इधर सूर्योदय होने लगा। सूर्यको आकाशमें उदित होते देखकर हनुमान्‌जीने उन्हें कोई लाल फल समझा और वे आकाशमें उछलकर सूर्यको निगलनेके लिये बढ़े। अमावस्या और प्रतिपदाकी सन्धि होनेके कारण उस दिन सूर्य ग्रहणका समय था और राहु भी सूर्यको ग्रस्त करनेके लिये पहुँचा था। हनुमान्‌जीका विशाल आकार-प्रकार और उन्हें सूर्यको निगलनेके लिये तत्पर देखकर राहु भागा। उसने इन्द्रसे निवेदन किया कि एक दूसरा महाराहु मेरा अधिकार छीनकर सूर्यको ग्रस्त करना चाहता है। आप मेरी तथा मेरे अधिकारकी रक्षा करें। इन्द्रने वहाँ आकर हनुमान्जीके हनु (ठुड्डी) पर वज्रका प्रहार किया। जिससे उनके हनुकी हड्डी टेढ़ी हो गयी। इसपर कुद्ध होकर पवनदेवने अपना प्रवाह बन्द कर दिया। इससे सभी देवता, मनुष्य तथा प्राणियोंके प्राण संकटमें पड़ गये। यह देखकर ब्रह्माजी तत्काल उस स्थानपर पहुँचे और उन्होंने हनुमान्जीको स्वस्थ करके उन्हें अमरत्वका वरदान दिया। अन्य देवताओंने भी उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया। उसके बाद वायुदेव प्रवाहित होने लगे। हनुकी हड्डी टेढ़ी होनेसे उनका मुख्य नाम हनुमान् पड़ गया। भगवान् श्रीरामने एकादश सहस्त्रवर्षतक पृथ्वीपर शासन किया। श्रीहनुमान्‌जी इतने दिनोंतक भगवान्‌की समस्त लीलाओंमें उनके सेवकके रूपमें उपस्थित रहे। भगवान् श्रीरामने उन्हें वर दिया कि जबतक मेरी कथा इस संसारमें रहेगी, तबतक तुम इस पृथ्वीपर रहोगे और तुम्हारी कीर्ति अमर रहेगी।



श्रीहनुमान्‌जीकी यह विशेषता है कि वे अपने भक्तकी रक्षा और उसके उत्थानके लिये सदैव जागरूक रहते हैं। इसीलिये वे जाग्रत् देवताके रूपमें प्रसिद्ध हैं। वे नर-नारी सभीके उपास्य हैं। इनकी उपासनासे रामभक्ति, वादमें जय, युद्धमें विजय, पृथ्वी एवं राज्यकी प्राप्ति, दीर्घायु और परम कल्याणकी प्राप्ति होती है। इनकी स्तुतियोंमें हनुमानचालीसाका सर्वाधिक महत्त्व है। बजरंगबाण, हनुमानबाहुक तथा सुन्दरकाण्डका पाठ भी इनकी प्रसन्नताका साधन है। इनके मन्त्र, ध्यान भी बहुत हैं। इनकी उपासनामें शारदातिलकका अष्टादशाक्षर मन्त्र विशेष प्रभावशाली माना गया है। मन्त्र इस प्रकार है-‘ॐ नमो भगाते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा।’ किसी भी रूपमें उपासना करनेपर श्रीहनुमान्‌जी भक्तोंकी तत्काल सहायता करते हैं।

रुद्रावतार श्रीहनुमान्

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