हनुमद वडवानल स्तोत्र के पाठ से देवों का कोप, ग्रहों का अरिष्ट, प्रेतादि बाधा, अतिकष्ट की स्थिति, रोगों का उपद्रव, चोरभय, परकृत्य तथ विषप्रभाव राह आदि ग्रहों की पीडा का नाश होता है। इसके प्रभाव से दुःस्य एवं सब प्रकार का भय दूर होता है तथा हनुमान जी की अनुकम्पा बनी रहती है। शनिवार या मंगलवार के दिन ब्राह्म मुहर्त में या निशीथ काल में एकाग्रचिन होकर लाल वस्त्र धारण करके घी एवं तेल का दीपक जलाकर हनुमान जी की मूर्ति के सामने इस स्तोत्र का १०८ बार पाठ करना चाहिए। हनुमद् पूजन के पूर्व गणेश स्मरण आवश्यक है सहस्त्र पाठ से विजय एवं अभीप्सित कार्यों की सिद्धि होती है। साधक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन अवश्य करें।
विनियोगः
ॐ अस्य श्रीहनुमद् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीवडवानल हनुमद् देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिः, सौं कीलकं, मम समस्त-विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रु-क्षयार्थे मम समस्त रोगप्रशमनार्थं आयुरारोग्यैश्वर्याभिबृद्ध्यर्थं समस्त पाप-क्षयार्थं श्री सीता-रामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र-पाठे विनियोगः।
करन्यासः
ॐ ह्रां-अङ्गुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ हूं-मध्यमाभ्यां नमः। ॐ हैं-अनामिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रः-करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादिन्यासः
ॐ ह्रां-हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं-शिरसे स्वाहा। ॐ हूं-शिखायै वषट्। ॐ हैं-कवचाय हुम् । ॐ हौं-नेत्र-त्रयाय वौषट् । ॐ ह्रः अस्त्राय फट्।।
ध्यानम्
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानर-यूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।
मूलमंत्रः ॐ हां हीं नमो रामदूताय महाबलपराक्रमाय स्वाहा।
स्तोत्रारम्भः –
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्री महाहनुमते प्रकट पराक्रम सकल दिङ् मण्डल-यशोवितान् धवली-कृत जगत् त्रितय वज्रदेह रुद्रावतार लंकापुरीदहन उमा अर्गलमन्त्र उदधिबन्धन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायुपुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्द-कर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यरण पर्वतोत्पाटन कुमार ब्रह्मचारिन् गंभीर नाद सर्व-पाप-ग्रह-वारण सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीरवीराय सर्व-दुःख निवारणाय ग्रहमण्डल सर्व-भूप्त-मण्डल, सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत ज्ज्वर एकाहिक ज्वर द्वाहिक ज्वर त्र्याहिक ज्वर चातुर्थिक ज्वर संताप-ज्ज्वर विषम-ज्ज्वर तापज्ज्वर माहेश्वर वैष्णव-ज्वरान् छिन्धि छिन्धि यक्ष ब्रह्मराक्षस-भूतप्रेत-पिशाचान् उच्चाटय उच्चाटय स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमते ॐ ह्रां हीं हूं हैं ह्रौं ह्रः ॐ हां हां हां ॐ सौं एहि एहि एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा हनुमते श्रवण चक्षुर्भूतानां शाकिनी-डाकिनीनां विषमदुष्टानां सर्वविषं हर हर आकाश भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय सकलमायां भेदय भेदय स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महाहनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल बन्धन मोक्षणं कुरु कुरु। शिरः शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नाग-पाशानन्त-वासुकि-तक्षक कर्कोट-कालियान् यक्षकुल-जगत रात्रिंचर दिवाचर सर्पान्निर्विषं कुरु कुरु स्वाहा। राजभय-चोरभय-परमन्त्र-परतन्त्र परविद्याश्छेदय छेदय स्वमन्त्र स्वयन्त्र स्वतन्त्रका विद्याः प्रकटय प्रकटय सर्वारिष्टान्नाशय नाशय सर्वशत्रून्नाशय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।।
(इति स्तोत्रमञ्जूषायां प्रथमेभागे विभीषणकृतं श्री हनुमद्वडवानलस्तोत्रं सम्पूर्णम्।)
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