एकादशी व्रत कथा
यूधिष्ठिर बोले – भाद्रपदके कृष्णपक्षमें किस नामकी एकादशी होती है। हे जनार्दन ! कहिये, मैं उसे सुनना चाहता हूँ ॥ १ ॥ श्रीकृष्ण बोले- हे राजन् ! तुम सावधान होकर सुनो, मैं विस्तारपूर्वक कहूँगा। अजा नामसे प्रसिद्ध यह एकादशो संपूर्ण पापोंको नष्ट करनेवाली है ॥ २ जोमनुष्य
एकादशी व्रत कथा
हृषीकेश भगवान्की पूजा करके उसके व्रतको करता है। उसके पाप नष्ट होजाते हैं, व्रतका विधानमात्र सुननेसे भी पापोंका नाश हो जाता है ॥ ३ ॥ हे राजन् ! दोनों लोकोंमें इससे अधिक हितकारी कोईऔर नहीं है। यह मैंने सत्य कहा है, झूठ नहीं ॥ ४ ॥ पहले हरिश्चन्द्र नामका प्रसिद्ध राजा हो गया है। जो चक्रवर्ती, सत्यप्रतिज्ञऔर संपूर्ण पृथिवीका स्वामी था ।॥ ५ ॥ वह किसी कर्मके योगसे राज्यसे भ्रष्ट हो गया और रानी तथा पुत्रको बेचकर वह स्त्रयं भी विक गया ॥ ६ ॥ हे राजेन्द्र ! वह पुण्यात्मा राजा चाण्डाल (भंगी) का दास हो गया और सत्यके भरोसे मृतकके बसों को ग्रहण करनेवाला होते हुए भी ॥ ७ ॥ वह श्रेष्ठ राजा सत्यसे चलायमान नहीं हुआ। इस प्रकार बहुतमेगये ॥ ८ ॥ तत्र चिन्तासे युक्त वह राजा अत्यन्त दुसी हुआ। कि क्या करूँ, कहाँ जाऊँ, और कैसे मेरा उद्वार होवे ॥ ६ ॥ इस प्रकार चिन्ता करते हुए और पापरूपी समुद्रमें डूबे हुए उस राजाको दुखी जानकर उसके पास कोई मुनि आये ॥ १० ॥क्योंकि
अजा एकादशी व्रत कथा
ब्रह्माजीने परोपकारके लिए ही ब्राह्मणको बनाया है। उस नृपश्रेष्ठने ब्राह्मणसुनिको देखकर नमस्कार कियां ॥ ११ ॥ और उन गौतममुनिके सामने हाथ जोड़कर खंड़ा हो गया । तथा दुःखयुक्त अपना वृत्तान्त’ कहने ‘लगा ॥ १२ ॥ राजाके वचनोंको सुनकर गौतमज़ी आश्चर्ययुक्त हो गये और सुनिने राजाके लिए इस ‘व्रता’ उपदेश किया ॥ १३॥ हे राजन् ! ‘भाद्रपदमासके कृष्णपक्ष में अजा नामकी शुभ एकादशी होती हैजो अधिक पुण्यकों देनेवाली है॥ १४ ॥ हे राजन् ! तुम उसका व्रत करो, तुम्हारा पाप नष्ट हो जायगा, तुम्हारे भाग्यसे वह एकादशी सातवें दिन ही आ रही है ॥ १५ ॥ उपवासमें तत्पर होकर रात्रिमें जागरण करो। इस प्रकार उस एकादशीका व्रतServices करनेसे सब पाप नष्ट हो जाते हैं ॥ १६ ॥ हे नृपोत्तम ! तेरे पुण्यके प्रभावले ही मैं यहाँ आया हूँ। यहकहकर मुनि अन्तर्धान हो गये ॥ १७ ॥ राजाने सुनिके वाक्यको सुनकर उस उत्तम व्रतको किया। जिसके प्रभाव से क्षणमात्रमें ही राजाके पापोका अन्त हो गया ॥ १८ ॥ हे राजसिंह ! इस व्रतके प्रभावको सुनो। जो दुःख बहुत वर्षों तक भोगने योग्य था उसका क्षणभरमे ही नाश हो गया ॥ १९ ॥ इस व्रतके प्रभावसे राजा दुःखसागरसे पार हो गया और राजाकापत्नीके साथ मिलन हुआ तथा उसने जीवित पुत्रको प्राप्तhttp://Google.com किया ॥ २० ॥ देवताओंने प्रसन्न होकर दुन्दुभी आदि बाजे बजाये, तथा स्वर्गसे फूलोंकी वर्षा हुई’ औरं राजाने एकादशीके प्रभावसे अकण्टक राज्यको प्राप्त किया ॥ २१ ॥ अन्तमें नगरके लोगों तथा कुटुम्बके सहित राजा हरिश्चन्द्रने स्वर्गको प्राप्त किया। हे राजन् ! जो उत्तम द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) इस प्रकारअश्वमेध यज्ञके फलको प्राप्त होता है ॥ २३ ॥ व्रतको करते हैं ॥ २२ ॥ वे सब पापोंसे छूटकरHome निश्चय ही स्वर्गको जाते हैं। हे राजन् ! इसके पढ़ने और सुननेसे मनुष्यअश्वमेध यज्ञके फलको प्राप्त होता है ॥ २३ ॥